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माँ – Poem: mother

I found this lovely poem on mother (hindi).

माँ

शब्द नहीं हैं कुछ मेरे पास,
बनाते हैं जो तुम्हे कुछ ख़ास|

इस धरा में कुछ भी नही है इतना पावन,
जितना मधुर मन तुम्हारे पास है मनभावन|

जिन परिस्थितियों का सामना कल तुम्हे करते देखा,
आज उसकी कसौटी पर खुद को खड़े देखा|

कर्तव्य विमुख होने को जी हमेशा चाहता है,
उस कर्तव्य पर कल और आज तुम्हे डटे ही देखा है|

आज होठों पर हसी कम , आखों मे अंगार ज़्यादा है,
हर विषम परिस्थिति में तुम्हे हसता हुआ ही पाया है|

दिन रात हमे पालने में तुमने एक किया है,
आज हमने उन्ही दिनों को अलग और रातों को अलग किया है|

गंभीरता तुझमे पहाड़ों से कुछ ज़्यादा है,
गहराई तुझमे समुंद्र से कुछ ज़्यादा है,
ऊँचाई तुझमे अंबार से कुछ ज़्यादा है,
धैर्यता तुझमे पृथ्वी से कुछ ज़्यादा है|

सबको खुश रख कर तुमने आँसू पीये हैं,
हमे खुश रखने मे तुमने सब कुर्बान किया है|

आज तुम्हारी एक अच्छाई मुझमे समा जाती,
मैं भी शायद आज कुछ धन्य हो जाती|

धैर्यता का पाठ अभी तुमसे सीखना है,
शालीनता से रहना अभी तुमसे सीखना है|

उस प्रभु को करती हूँ मैं शत – शत प्रणाम,
तुम्हारी बेटी बनाकर मुझे भी कुछ कर दिया महान|

कभी यह सोचती हूँ कि माँ बड़ी है या भगवान,
जवाब देने मे सकुचाती हूँ कहीं बुरा ना मान जायें ये भगवान|

इस धरती मे माँ से श्रेष्ट कुछ भी नही है,
शयाद धरती को माँ इसलिए कहते हैं,
क्योंकि उससे सर्वश्रेष्ट कुछ भी नही है|